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आश्रम के साथ जुड़ेंश्रीगोवर्धन पीठ वृन्दावन के महान् सन्त अनन्तश्री विभूषित स्वामी राजेन्द्राचार्य (परमहंस) स्वामी के प्रधान शिष्य अनन्तश्री विभूषित स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज ने धर्मप्रचार एवं धर्मरक्षार्थ सरौती, रामपुर चौरम (अरवल) में श्रीराम, लक्ष्मण जानकी एवं श्री बेकटेश भगवान् से युक्त स्थान तथा श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की। वहीं से अनन्तश्री स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज ने सरौती को केन्द्र बनाकर सनातन श्रीवैष्णव धर्म एवं भारतीय संस्कृति के संवाहिका संस्कृत का प्रचार-प्रसार सम्पूर्ण देश में करना प्रारम्भ किया।
परिणामस्वरूप सरौती के अनेक स्नातक सन्त एवं विद्वान् बनकर देश एवं समाज सेवा में संलग्न हो गये। अनन्तश्री स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज के प्रधान शिष्य अनन्तश्री स्वामी रङ्गरामानुजाचार्य जी महाराज ने शिक्षा ग्रहण के उपरान्त स्वयं का व्यक्तिगत जीवन अपने गुरु के चरणों में समर्पित कर गुरु के आदेशानुसार श्रीवैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार, समाज सेवा द्वारा राष्ट्र सेवा का कार्य प्रारम्भ कर दिया।
धर्मप्रचार के क्रम में सन् १९६९ में हुलासगंज में अद्भुत विराट् ज्ञानयज्ञ का स्वामी रङ्गरामानुजाचार्य जी ने सफल आयोजन किया, जिससे स्वामी जी के अन्दर विद्यमान ज्ञान, वैराग्य एवं आध्यात्मिकता से समाज परिचित हुआ। फलस्वरूप क्षेत्रिय जनता की सहयोग से अपने गुरु के सान्निध्य में अनन्तश्री स्वामी रङ्गरामानुजाचार्य जी महाराज द्वारा १९७० में श्रीलक्ष्मी-नारायण मन्दिर की स्थापना के साथ श्रीस्वामी परांकुशाचार्य संस्कृतोच्च विद्यालय की स्थापना हुलासगंज में हुयी। हुलासगंज स्थान एवं हुलासगंज क्षेत्र की विकास-यात्रा यहीं से प्रारम्भ हुयी जो अद्यावधि निर्बाध गति से चल रही है।
हाल ही में मेहन्दिया के पुराने मंदिर में एक नया प्रभावशाली मंदिर परिसर से प्रतिस्थापित किया जा रहा है। इस मंदिर के मुख्य देवता चला और अचला दोनों है जो राम, सीता और लक्ष्मण है। मूल विग्रह शुरुआत के बाद से जुलूस के रूप में आसपास के गांवों के आसपास ले लिया गया है। इस जगह की विकासात्मक गतिविधियों नई पीढ़ी विद्वान संत द्वारा नजर रखी जा रही है, स्वामी हरे राम जेईई जिसे भक्त भक्तिभाव से छोटे स्वामीजी कहते हैं, उन्होंने प्रभु वेंकटेश की प्रशंसा में कई विनम्र भक्ति गीत की रचना की है और वे हुलासगंज मंदिर के प्रमुख देवताओं से पहले भक्तों द्वारा हर शाम का पाठ करते है।
मन से किसी का बुरा न सोचे, ऐसा वचन न बोलें जिससे किसी को कष्ट हो जाय और शरीर से भी किसी को कष्ट न पहुँचायें ।